विवाह पितृऋण मुक्ति के लिए किया जाता है : इंदुभवानंद तीर्थ महाराज
रायपुर। खमतराई रायपुर में चल रही श्रीमद् भागवत की कथा को विस्तार देते हुए शंकराचार्य आश्रम के प्रभारी डॉ. स्वामी इंदुभवानंद तीर्थ महाराज ने बताया कि विवाह पितृ ऋणमुक्ति के लिए किया जाता है। यह एक धार्मिक संस्कार है जिसके द्वारा प्रवृत्ति मार्ग की ओर अग्रसर होकर जीव पितृऋण से मुक्त होकर मुक्ति की ओर अग्रसर हो जाता है। सनातन धर्म के अनुसार आश्रम से आश्रम की ओर जाना सिद्धांत को सर्वश्रेष्ठ माना गया है इसी सिद्धांत का आश्रय लेकर भगवान ने भी विवाह करके प्रवृत्ति मार्ग को अपनाने की शिक्षा दी।

रुक्मिणी साक्षात् लक्ष्मी के स्वरूप में थी। उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण को मन ही मन पति मानकर ब्राह्मण के द्वारा संदेश भेजा और अपने गोपनीय पत्र में लिखा की हे! मुकुंद आप भक्ति और मुक्ति दोनों के दाता है। आपका मुकुंद नाम तभी सार्थक होगा जब आप मुझे इस विपत्ति के सागर से उबार लेंगे। इस संसार में कुल, शील, रूप, विद्या और धन से संपन्न कौन सी स्त्री है जो आपको पति के रूप में स्वीकार करना नहीं चाहेगी? अर्थात् संसार की सारी स्त्रियां आपको अपना पति बनाने की कामना रखती हैं इसलिए मैंने भी आपको पति रूप में वरण कर लिया है। मैं आपको आत्म समर्पण कर चुकी हूं। आप अंतर्यामी हैं मेरे हृदय की बात आपसे छिपी नहीं है। आप यहां पधार कर मुझे अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार करने की कृपा कीजिए है। हे! वीर आप हमारे सनातन पति हैं और मैं आपकी शाश्वत पत्नी हूं। आप यहां आइये और अपनी वीरता का शुल्क देकर मेरा पाणिग्रहण संस्कार कीजिए। भगवान श्रीकृष्ण ने पत्रवाहक ब्राह्मण को साथ में लेकर रुक्मिणी की इच्छा पूर्ण करने के लिए शीघ्र ही विदर्भ देश की ओर प्रस्थान किया तथा रुक्मिणी जी की इच्छा को पूर्ण करने के लिए उनका हरण करके वैदिक विधि से विवाह संपन्न किया।

वृंदावन से पधारे कलाकारों के द्वारा रुक्मिणी मंगल की झांकियां प्रस्तुत की गई। कथा के पूर्व यजमान सुदर्शन साहू, डुल्ली बाई साहू गज्जू साहू, गोदावरी साहू, मान बाई साहू निरंजन साहू, मेनका साहू तथा परिवार के अन्य श्रोताओं में भागवत भगवान की पोथी का पूजन कर पुराण पुरुषोत्तम भगवान की आरती संपन्न की। शंकराचार्य आश्रम के वैदिक विद्वानों ने कर्मकांड भाग को संपन्न कराया।

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